साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
हज़ारीबाग, झारखण्ड
1970
सुकुमा की धरती हुई, आज रक्त से लाल। परिजन सारे रो रहे, होकर के बेहाल॥ होकर के बेहाल, तड़पते घायल सैनिक। ज़ालिम चलते चाल, हया भी आज गई बिक॥ ममता कहती आज, लगी जन-जन को सदमा। अमर हुए जाँबाज़, व्यथित अतिशय है सुकुमा॥
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