साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
1958
है तो मिट्टी की ही मूरत कच्ची मिट्टी की। उम्र की धूप में तपी दु:खों की आँच में पकी है तो मिट्टी की ही मूरत! यह आपका है प्यार कि लगता है रंग-रोगन लगने से आया है इसमें निखार वरना क्या है कि एक ठोकर में टूट सकती है यह या गलना ही है इसे किसी के आँसुओं में भीगकर है तो मिट्टी की ही मूरत कच्ची मिट्टी की। इसके बाहर भी है क्या कोई अमरता!
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