अनाघ्रात मधु यामिनी (दोहा छंद)

मुस्काती सुन्दर अधर, शर्मीली सी नैन।
दंत पंक्ति तारक समा, मुग्धा हरती चैन।।

मादकता हर भाव में, कर्णफूल अभिराम।
सजी हाथ में चूड़ियाँ, खनखाती अविराम।।

मिलन मनसि ले बालमा, जाती मंडप जाती प्रीत।
रखी चूनरी माथ पर, मुस्काती नवनीत।।

तन्वी श्यामा चन्द्रिका, करे वन्दना ईश।
कोमल किसलय हाथ में, आभूषण रजनीश।।

बनी अधीरा नायिका, गन्धमाद सम गात्र।
लचकाती गजगामिनी, हृदयंगम प्रिय पात्र।।

अमर सृष्टि विधिलेख की, सामवेद मृदु गान।
अनाघ्रात मधु यामिनी, बिम्बाधर रसखान।।

मन रंजित साजन मिलन, स्वप्नसरित नीलाभ।
कर वन्दन रति रागिनी, कामदेव अरुणाभ।।

बंद नैन घंटी बजी, चाह मनोरथ इष्ट।
चन्द्रमुखी रत प्रार्थना, मृगनयनी अति श्लिष्ट।।

मुख सरोज रति लालिमा, केशबन्ध अभिराम।
पलकें सम काली घटा, मीन नैन सुखधाम।।

लखि निकुंज कवि कामिनी, दर्शन मन आनन्द।
खिले सुभग रमणी चमन, हृदय पुष्प मकरन्द।।


लेखन तिथि : 8 मई, 2020
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