साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश
1953
मैं उनके लिए पागल हूँ जिन्हें बचा नहीं सका मैं उनके लिए रोता हूँ जो लड़ते हुए क़ब्र में अब भी ज़िंदा हैं मैं रस्मी मातम में शरीक़ नहीं मैं उन आवाज़ों में हूँ जिनमें मुक्ति का गान गूँजता है मैं उनके लिए अपनी घृणाओं को आकाश करना चाहता हूँ मैं न्याय के लिए अंतिम सिपाही की तरह जीत के लिए मर जाना चाहता हूँ।
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