अपनी जगह पर (कविता)

सारी चीज़ें
हटी हुई हैं
अपनी जगह से
वृक्ष उदास हैं
और अपनी हरीतिमा से ऊब रहे हैं
फूल बदरंग हैं
और बेमौसम खिल रहे हैं
पक्षियों के पंखों पर
ठहरी हुई हैं उड़ानें
ग़ायब है आकाश का नीलापन
नक्षत्र, ग्रह, सूर्य और चंद्रमा
ठीक-ठीक नहीं चमकते
इधर सूर्य भी
अपनी धुरी पर
कभी तेज़ी से, कभी धीमे घूमता है
पृथ्वी भी
उसका चक्कर लगाते-लगाते
थक रही है
विश्राम चाहती है
अंतरिक्ष भी अकेला-अकेला-सा है
आकाश-गंगाएँ
बुझना चाहती हैं
लंबी दूरी का तेज़ धावक
थकान महसूस कर रहा है
जब यह सब हो रहा है
कैसे मैं अपनी जगह पर
खड़ा रह सकूँगा?
सारी चीज़ें हट रही हैं
अपनी जगह से


रचनाकार : आग्नेय
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