अपूर्ण नव वर्ष (गीत)

किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं

है स्याह धुँध से भरी रात
ख़ुशियों की कोई नहीं बात
धरती अम्बर ये दसों दिशा
हर एक मुझे बस शांत दिखा
ना ऋतु वासंती आई है
वसुधा ना प्यास बुझाई है
हर ओर ठिठुरते जीव सभी
दिल में है किसी के हर्ष नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं

है नहीं अभी अम्बर नीला
बच्चों का मन रंगीला
वसुधा से ना ख़ुशबू आई
प्रकृति भी अभी ना मुस्काई
ना फ़सल पकी है खेतों में
बस कटती रात है ज्यों त्यों में
चमन फूल है खिले नहीं
मधुकर में भी वो कर्ष नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं

प्रस्फुटित नए अंकुर होंगे
नभ ओर पथिक प्रांकुर होंगे
बच्चे जब धूल उड़ाएँगे
बाबा होरियाँ सुनाएँगे
जब आएँगे राम संग भ्राता
होगा माता का जगराता
तब रंग गुलाल उड़ाएँगे
नव वर्ष सहर्ष मनाएँगे
मधु पवन अभी स्पर्श नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं


रचनाकार : सुशील कुमार
लेखन तिथि : 2024
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