अपराधी है तो थाना है (गीतिका)

अपराधी है तो थाना है,
कैसा खूँखार ज़माना है।

हमको अनजाना शहर मिला,
औ सारी रात बिताना है।

हासिल करने की ख़्वाहिश में,
क्या अपना माल गँवाना है।

सारी महफ़िल मायूस हुई,
औ हमको पड़ा हँसाना है।

मिली बेहयाई हमको क्यों,
सब कहते रहे लजाना है।


लेखन तिथि : 23 जुलाई, 2020
यह पृष्ठ 147 बार देखा गया है
आधार छंद : चौपाई
×

अगली रचना

ख़्वाहिश का उठे जनाज़ा है


पिछली रचना

जब जिसने है अपकार किया
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें