अरहर की दाल (कविता)

कितनी स्वादिष्ट है
चावल के साथ खाओ
बासमती हो तो क्या कहना
भर कटोरी
थाली में उड़ेलो
थोड़ा गर्म घी छोड़ो
भुनी हुई प्याज़
लहसन का तड़का
इस दाल-चावल के सामने
क्या है पंचतारा व्यंजन
उँगली चाटो
चाक़ू चम्मच वाले
क्या समझें इसका स्वाद!
मैं गंगा में लहर पर लहर
खाता डूबता
झपक और लोरियाँ
हल्की-हल्की
एक के बाद एक थाप
नींद जैसे
नरम जल
वाह रे भोजन के आनंद
अरहर की दाल
और बासमती
उस पर तैरता थोड़ा-सा घी।


रचनाकार : इब्बार रब्बी
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