असहमति (कविता)

मैं अगर कहूँगा शून्य
तो ढूँढ़ने लग जाएँगे बहुत से लोग बहुत कुछ

इसलिए कहता हूँ ख़ालीपन

जैसे बामियान में बुध्द प्रतिमा टूटने के बाद का
जैसे अयोध्या में मस्जिद ढहने के बाद का

ढहा-तोड़ दिए गए दोनों
ये मेरे सामने-सामने की बात है

मेरे सामने बने नहीं थे ये
किसी के सामने बने होंगे

मैं बनाने का मंज़र नहीं देख पाया
वह ढहाने का

इन्हें तोड़ने में कुछ ही घंटे लगे
बनाने में महीनों लगे होंगे या फिर वर्षों
पर इन्हें बचाए रखा गया सदियों-सदियों तक

लोग जानते हैं इन्हें तोड़ने वालों को नाम से जो गिनती मे थे
लोग जानते हैं इन्हें बनाने वालों को नाम से जो कुछ ही थे

पूर्ण सहमति तो एक अपवाद पद है

असहमति के आदर के सिवा भला कौन बचा सकता है किसी को
इतने लंबे समय तक


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