आषाढ़ महात्म (कविता)

चौथा माह आषाढ़ है आया,
आग उगलते सूरज पर विराम लगाया।
नहीं चलेगी किसी की गुंडागर्दी,
गर्मी की तुमने तो हद कर दी।
सूरज बोला बज रहा है
अभी मेरे नाम का डंका,
नहीं है इसमें किसी को
अब तक कोई शंका।
सारी दुनियाँ को मैं राख करूँगा,
धरती से जीवन ख़ाक करूँगा।
पर आषाढ़ तो है अवतारी,
उसको भेजा ख़ुद त्रिपुरारी।
उसने अपनी बादल फ़ौज बुलाई,
सूरज की चौतरफ़ा हुई घेराई।
सिंहनाद कर शुरू हुए बाण छूटने,
लगा तुरत सूरज का अभिमान टूटने।
पल भर में धरती हो गई सराबोर,
आया सूरज घुटनों पर कर जोर।
बोला आषाढ़ जो करता जीवन का सृजन,
लोग पूजते हैं उसको मान भगवन।
सूरज बोला हे आषाढ़ तुमको नमन,
अब मैं भी दूँगा सबको नवजीवन।
पानी बरसा ख़ूब झमाझम,
भर गए ताल तलैया भर गया धरती का दामन।
हरी भरी हो गई धरती,
शुरू हुआ दादुर गायन।
देखो कैसा नाच रहा मयूर,
नाच रहा है अब जन-जन।
आषाढ़ कहता सुन लो भूषण सब जन,
धरती पर जल ही है जीवन।
करो इसका ससम्मान सञ्चन,
इससे ही होता शिव का पूजन अर्चन।


लेखन तिथि : 27 जून, 2022
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