अश्क आँखों में कब नहीं आता (ग़ज़ल)

अश्क आँखों में कब नहीं आता,
लोहू आता है जब नहीं आता।

होश जाता नहीं रहा लेकिन,
जब वो आता है तब नहीं आता।

सब्र था एक मोनिस-ए-हिज्राँ,
सो वो मुद्दत से अब नहीं आता।

दिल से रुख़्सत हुई कोई ख़्वाहिश,
गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता।

इश्क़ को हौसला है शर्त अर्ना,
बात का किस को ढब नहीं आता।

जी में क्या क्या है अपने ऐ हमदम,
पर सुख़न ता-ब-लब नहीं आता।

दूर बैठा ग़ुबार-ए-'मीर' उस से,
इश्क़ बिन ये अदब नहीं आता।


रचनाकार : मीर तक़ी 'मीर'
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