साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रेवाड़ी, हरियाणा
1960
अश्कों की बरसातें ले कर लोग मिले, ग़म में भीगी रातें ले कर लोग मिले। पूरी एक कहानी कैसे बन पाती, क़तरा क़तरा बातें ले कर लोग मिले। भर पाते नासूर दिलों के कैसे जब, ज़हर बुझी सौग़ातें ले कर लोग मिले। अब ग़ैरों से क्या शिकवा करने जाएँ, अपनों को ही मातें दे कर लोग मिले। आशिक़ का टूटा दिल कोई क्यों देखे, जब अपनी बारातें ले कर लोग मिले।
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