जिन्हें हम एक मुद्दत से जानते हैं
और मिलते ही रहते हैं अक्सर
ऐसे और इतने अपनों पर
बुढ़ापा कब आया
जवानी कहाँ चली गई, किधर...
उम्र के पड़ावों को आसानी से नहीं पहचानते
कभी-कभी
समय में लिपटा
यह अपनापन भी कितना आड़े आता है
भरसक ठेले गए वर्तमान में भी अतीत कितना कितना समाया रहता है!
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।