और कसो तार तार सप्तक में गाऊँ!
ऐसी ठोकर दो मिजराब की अदा से
गूँज उठे सन्नाटा सुरों की सदा से
ठंडे साँचों में मैं ज्वाल ढाल पाऊँ!
और कसो तार तार सप्तक में गाऊँ!
खूँटियाँ न तड़कें अब मीडों में ऐंठूँ,
मंजिल नियराए, जब पाँव तोड़ बैठूँ,
मुँदी-मुँदी रातों को धूप में उगाऊँ!
और कसो तार तार सप्तक में गाऊँ!
नभ बाहर-भीतर के द्वंद्वों का मारा,
चिपकाए शनि चेहरे पर मंगलतारा!
क्या बरसा? मरती धरती निहार आऊँ!
और कसो तार तार सप्तक में गाऊँ!
ढीले संबंधों को आपस में कस दूँ,
सूखे तर्कों को मैं श्रद्धा का रस दूँ,
पथरीले पंथों पर दूब मैं उगाऊँ!
और कसो तार तार सप्तक में गाऊँ!
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