कविता में
चहचहाती हुई
दाख़िल होती है
एक बच्ची
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है
जवान होने तक
वह उदास हो जाती है
कविता में
औरत के आँसुओं से
भीगती रहती है समूची गृहस्थी
फिर सारे तजुर्बे
काम आते हैं दुआओं के
और देवदूतों की बनाई हुई
इस दुनिया को कोसने में
कितने साध भरे होते हैं
औरत के कंठ से
फूटे हुए लोकगीत
और कितनी शापग्रस्त होती है कविता
औरत के बारे में!