छोड़ विसंगति की राहें,
सुदृढ़ कर निज दुर्बल बाहें।
न तुझसे होगी कभी चूक,
तब लक्ष्य होगा तेरे सम्मुख।
जो डरकर तू गया रुक,
हो जाएगा पथ से विमुख।
कुछ भी तेरे हाथ न आएगा,
जग हँसी तेरा उड़ाएगा।
लक्ष्य का तू कर संधान,
चाहें जितना हो व्यवधान।
न रुकेगा, कर दृढ़ संकल्प,
पृथक इसके ना है विकल्प।
तब मंज़िल के होगा निकट,
पथ-पथरीला हो या विकट।
तब होगी कामना तेरी पूर्ण,
कुछ भी तो न रहेगा अपूर्ण।
जिसने कुछ पाया यही मान,
कर समस्याओं का समाधान।
निरंतर चल प्रगति-पथ पर,
पाया निज गौरव व सम्मान।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें