मै आवारा परदेशी हूँ, मेरा नही ठिकाना रे,
ओ मृग नयनों वाली सुन ले, मुझसे दिल न लगाना रे।
जब तीर नज़र का किसी जिगर
को पार कभी कर जाता है,
प्यार मुहब्बत में बेचारा
चैन नही फिर पाता है।
घुट-घुट फिर जीना होता है, पड़ता अश्क़ बहाना रे,
ओ मृग नयनों वाली सुन ले, मुझसे दिल न लगाना रे।
इस दिल का उस दिल से कोई
नाता जब जुड़ जाता है,
तब इक पल की दूरी रखना
भी मुश्किल पड़ जाता है।
मैं परदेशी मुझे कभी घर, होगा वापस जाना रे,
ओ मृग नयनों वाली सुन ले, मुझसे दिल न लगाना रे।
वापस घर जब मैं जाऊँगा
अपने नेक इरादों से,
तब तुमको दर्द मिलेगा प्रिय
उन क़समों उन वादों से।
सूना-सूना फिर दिल होगा, जग होगा वीराना रे,
ओ मृग नयनों वाली सुन ले, मुझसे दिल न लगाना रे।
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