खिड़की से बूँदें देखकर लहकी लड़की
भीगने के लिए जब तक छत पर पहुँची
बारिश रुक चुकी थी
उसके तलवे सहलाने के लिए रह गई थी
केवल गीली छत
चेहरे पर पड़ती हवा में बूँदों की तासीर तो थी
मगर बूँदों की रोमांचक चोट न थी
बच्ची उदासी भरे लहजे में बोली
अब्बू मैं अम्मी से बारिश की शिकायत करूँगी
और यकायक मुझे भान हुआ
कि दरवाज़े के पार होती बारिश से अनजान
मोबाइल की बोर्ड पर चलती उँगलियों में खोया
असली कविता उधेड़कर नक़ली कविता बुन रहा हूँ
मैं कविता को छोड़कर महज़ कवि को सुन रहा हूँ
मुझे अहसास हुआ कि कविता और मुझमें
बस इतनी ही दूरी है
जितनी छत और जीने की सीढ़ियों में है
पास बैठे बाप और बेटी की पीढ़ियों में है
कि परिपक्वता कविता की नहीं कवि की मजबूरी है
कविता तो किसी छत पर बारिश में भीग रही होगी
और कवि समझदारी का लबादा ओढ़े
बालकनी में बैठकर हिक़ारत से देख रहा होगा
बस मैंने छत का दरवाज़ा खोला और पुकारा बेसाख़्ता
जल्दी आओ अमायरा बारिश फिर से आई है
जीवन की सच्ची कविता मैंने अभी-अभी सीखी है
अपनी तीन साल की बेटी से
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