बात बिनु करत पिया बदनाम।
कौन हेतु वह लाज हरै मम बिना बात बे-काम॥
आजु गई हौं प्रात जमुन-तट आयो तहं घनस्याम।
पकरि मोहिं जल बीच हलोर्यो तोर्यो गर की दाम॥
लरि कंकन को दियौ खरौटा मेरे मुख सुनु बाम।
‘हरीचंद’ जाने जामैं सह छिपै न प्रीति मुदाम॥

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