बात ख़त्म किए बिना (कविता)

मैं चुप क्यों हो गया
बात के ख़त्म होते न होते
या शायद
मैं बात पूरी कर चुका

कई लोग उठकर चले गए हैं
कई को मेरी बात से गुज़रते
संकोच हो रहा है
देख सकता हूँ
कुछ की पुतलियाँ
आँखों से गिर चुकी हैं
मेरी बात के ख़त्म होते न होते
बात ख़त्म हो गई है
लेकिन उसके होने में जबकि
काफ़ी समय बचा है

यों मैंने ठिकाने की
कितनी बातें कीं
मैं नहीं जानता
लेकिन मैंने कहा था
यह जो मैं कह रहा हूँ
शब्द कुछ मेरे भोगे हुए हैं
उन्हें सुनकर
या चुनकर नहीं कहा है
मैंने कहा
ज़रा सोचो
इतने सोचने में ही
शायद ज़्यादा सोचना हो जाए
मैंने ज़ोर से भी कहा।


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