बावजूद (कविता)

मैं अकेला बर्फ़ तोड़ता रहा
ठोस ठंडी और सफ़ेद बर्फ़

बर्फ़ के भीतर हैं
अनंत दुख भरे वृत्तांत
तापमान के ख़ौफ़ से
जो मोटी परतों में छिप गए हैं

मैं उन परतों में वह आग खोजता हूँ
जहाँ से बेशुमार धुआँ निकलता है

घनघोर रात में
मैं जानता हूँ कि निरापद नहीं हूँ
मुझे वातावरण में सामिष गंध महसूस हो रही है

लेकिन ज़िद्दी कठफोड़वे-सा
मैं सख़्त बर्फ़ तोड़ता हूँ
क्षत-विक्षत होने के बावजूद


रचनाकार : विनोद दास
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