पृथ्वी की आयु में बच्चे
बारहमासी बसंत हैं
बच्चों की हँसी-ख़ुशी से ही
धरती पर फूल खिलते हैं
फूलों में रंग नहीं खिलते
रंगों की हँसी खिलती है
फूल हवा के कान में
सुगंध बुदबुदाते हैं
और बच्चे जीवन की खिलखिलाहट
स्कूलों में बच्चों की हत्याएँ
शर्मसार कर देती हैं
मनुष्यता का माथा!
जिस समाज में बच्चों की फूल-हँसी नहीं होती
उसके आसमान में
श्मशान का शोक तैरता रहता है!
जो बच्चे हमारे सामने हँस-बोल रहे हैं
दरअसल, वे हत्याओं (हत्यारों) से बचे बच्चे हैं
पृथ्वी इन्हीं को निहार-निहार
अपने को मरने से बचाती रहती है!