बची रहे (कविता)

बचा रहे प्यास बुझाने जितना
पानी बादलों की कोख में

दुनिया भर के दुःखों की कठोरता के उत्तर में
धरती के आँचल में
नर्म दूब बची रहे

ज़रा-सी लाज बची रहे
ताकि बचा रहे स्त्रीत्व

बूढ़ों के सामने नई पीढ़ी की
आँखों में थोड़ी-सी शर्म के साथ
बचा रहे लिहाज़ ज़रा-सा,

द्वार पर आए साधु को
देने के लिए कोठार में नाज़ बचा रहे ज़रा-सा

तुम्हारे भीतर बची रहे मेरी याद ज़रा-सा
ज़रा-सा मुझसे मिलने की इच्छा बची रहे

दूर होने पर भी दोनों के बीच बचा रहे प्यार
ज़रा-से विश्वास का दामन
थामे हुए
ताकि दुनिया जीने लायक़ बची रहे ज़रा-सी!


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