यादें बचपन बड़ी सुहानी,
जैसे बहता पानी धार।
उछल कूद कर मौज मनाएँ,
बच्चों का है ये संसार।
बिचरण करते पंछी जैसे,
बचपन एक स्वछन्द उड़ान।
कभी बैठते डाली डाली,
कभी उड़ते पतंग समान।
पतंग जैसे पेंच लड़ाते,
झगड़ झगड़ लुटाए प्यार।
मात-पिता से ख़ूब पिटाई,
टीचर की डाँट फटकार।
चिड़िया पकड़ रंग कर छोड़ी,
बकरी संग लगाएँ दौड़।
नंगे पाँवों चुभते काँटे,
आगे जाने की थी होड़।
स्कूल बस में बस्ता छोड़ा,
पहुँच गए दोस्त के गाम।
शिक्षक ने शिकायत पहुँचाई,
शुरु हुआ झुराई का काम।
बारिश होती ख़ूब नहाते,
पानी में तैराते नाव।
पीछे-पीछे शाह सवारी,
धीरे-धीरे नाव घुमाव।
गर्मी बीते घर मामा "श्री",
होती बच्चों की सरकार।
पूड़ी कचौड़ी रस मलाई,
दावत रोज़ उड़ाएँ यार।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें