साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3547
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
गाँव लगे हैं ठीक शहर में- बड़ा झमेला है। दरका-दरका लग रहा आकाश। है चुभ रहा काँटों सा भुजपाश।। तारे तो हैं मगर स्वयं में चाँद अकेला है। गंधों की तितली के पंख जले। मानो मृग मरीचिका हमें छले।। अक्सर दिखेगा सड़कों में भीड़ का रेला है। दिन अब करने लगा है चाकरी। औ प्रेम की गलियाँ हैं साँकरी।। हुई शाम तो दिवस के अवसान की बेला है।
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