साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मुम्बई, महाराष्ट्र
1981
बढ़े जा रहे हैं, चले जा रहे हैं। सद गुरू कृपा बिन, फँसें जा रहे हैं। चकाचौंध माया, ठगे जा रहे हैं। दिखावे की रिश्तें, बँटे जा रहे हैं। खुलेपन में नंगे, हुए जा रहे हैं। भला क्या बुरा क्या, डटे जा रहे हैं।
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