साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
पटना, बिहार
1846 - 1927
बदले न सदाक़त का निशाँ एक रहे हर हाल में पिन्हाँ ओ निहाँ एक रहे इंसाँ है वही जो इस दौर-ए-दो-रंगी से बचे लाज़िम है कि दिल और ज़बाँ एक रहे
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