बहुत दिनों के बाद (कविता)

बहुत दिनों के बाद,
लगता है ऐसे;
जैसे ज़िंदगी का दायरा
सिमट गया हो एक छोटी बूॅंद में।
मेघों की भीषण गर्जना,
सिसकियों तक;
हो गई हो सीमित।
वेदना का घोर अन्धड़,
शांत हो,
ताक रहा हो;
आकाश की नीली ऑंखों में।
जहाॅं उसका अतीत
दिखाई देता है।
अपने यथार्थ रूप में।
वेदना के बादल भी,
जा बरसे हैं;
दूर, उस पुराने खंडहर में,
जहाॅं किसी का आना जाना
कभी नहीं होता।
हृदय की तरंगे भी,
अब हो गई हैं पूर्णतः शांत।
जैसे वृद्धापन की चादर ओढ़,
खोई हो;
अपनी जवानी के दिनों में।
और...
और तुम्हारी यादें भी,
टाॅंग दी गई हैं
खूटियों पर;
पुराने कपड़ों की भाॅंति,
हमेशा के लिए।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 1 जनवरी 2023
यह पृष्ठ 351 बार देखा गया है
×

अगली रचना

गहरी उदासी


पिछली रचना

दुःख हमें भी हुआ था
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें