बाल दिवस (कविता)

बाल दिवस मनाते हैं इस दिन, 14 नवंबर का दिन है आज,
आज के दिन बच्चों में होता, एक अलग ही अंदाज़।
स्कूलों में होते खेल-कूद, बच्चे रहते दिनभर व्यस्त,
छुट्टी का रहता माहौल, नाचते गाते होकर मदमस्त।

देखता हुँ जब ग़रीब बच्चों को, बीनते रहते सड़क से कचड़ा,
बाल दिवस के इस दिन, कोई न समझता इनका दुखड़ा।
नसीब न होती दो जून की रोटी, कैसे मनाएँ बालदिवस?
बच्चों के नाम है एक औपचारिकता, कैसा है यह बालदिवस?

मुफ़्त भोजन के नाम पर, स्कूलों में होता भ्रष्टाचार,
सुविधाएँ तो बस नाम की, मिलता नहीं सही आहार।
बाल मज़दूरी के विरोध में, होता यूँ ही सरकारी प्रचार,
काम करते कारखानों में, जीवन में घोर अंधकार।

छोटी-छोटी बच्चियों से, होते खुलेआम बलात्कार,
कैसे मनाएँ बाल दिवस, जब होता बच्चों का ही व्यापार?
कपड़े भी नहीं पुरे तन पर, हो रहे सब तार-तार,
अभिशाप बन गया बचपन इनका, मानवता का हुआ संहार।

कैसे मनाएँ बाल दिवस, जिन बच्चों के पास नहीं बचपन?
कंधों पर अपनों की ज़िम्मेदारी, खो गया इनका बचपन।
स्कूलों तक सीमित हो गया, बाल दिवस का यह दिन,
कैसे मनाएँ बाल दिवस ये बच्चे, जो कचरा बीनते प्रतिदिन?

कैसी है यह विडम्बना, कैसा यह विरोधाभास?
कैसे मनाएँ बाल दिवस, जब नहीं भविष्य की आश?
ग़रीबी का अजगर मुँह फैलाए, कर गया बचपन को ग्रास,
कैसे मनाएँ ये बाल दिवस, जब तन मन है हताश?


लेखन तिथि : 13 नवम्बर, 2021
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