बरसात के रूप (कविता)

लो आ गई पुरवाई लेकर फिर एक नई शुरुआत,
वो भीगा-भीगा सा मौसम और मदमाती बरसात।
लुकाछिपी करने लगी निष्ठुर धूप, जो लगाए बैठी थी घात,
रात तो थी ही सुहानी दिन में भी नज़र आने लगी रात।
चातक स्वाति बूँद को और प्रेमी युगल चाहे मुलाक़ात।
रिमझिम रिमझिम बूँदे नया राग सुनाती है।
प्रिय के सावन में आने का संदेशा ले आती है।
उमड़ घुमड़ जब बदरा आते, हिय भी उमड़ पड़ता है।
पिय मिलन के लिए, यह बार-बार मचल उठता है।
जो होवे मिलन तो नैना ख़ुशियों की बारिश भी करते हैं।
ऐसी बारिश से शुष्क हृदय भी तर हो उठते हैं।
बारिश की पहली बूँद जो मिट्टी की सौंधी महक है लाती।
वो मिट्टी की ख़ुशबू ही हमें ज़मीन से है जोड़ जाती।
फूल, पराग और मन सब खिल-खिल जाते हैं।
तालाब, नदियाँ, सागर सब आपस में मिल जाते हैं।
यह बरसात हम सब के अंदर की कलुषितता को धोए।
निर्मल हो जाए हिय, तो मन में भी ख़ुशियों के बीज बोए।


लेखन तिथि : 23 जुलाई, 2021
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