संक्रमण का दौर बड़ा ख़तरनाक होता है,
पर एक संक्रमण ऐसा हैं
जो जीवन-रंग में
बहार-गुबार भर देता हैं।
धरती धारण करती हैं
चर्मोत्कर्ष शृंगार, सज्जा की
तोरी, तीसी, तरुणी आम्र मंजरी
मह-मह करती बाग़ की राग
बसंती हवा बसंती हवा।
यह बदलाव की निशानी हैं
धरती धारण करती
ये इंसानी प्रस्फुटन की कहानी हैं
ये बसन्त बस जाती है अंत तक
अन्तःकरण की नैसर्गिक दुनियाँ में
परिमार्जित, परिष्कृत करती
संक्रमण की दुनियाँ से बाहर
लाती एक नए वैचारिकी नए धरातल पर
जहाँ से एक अलग राग-जंग
शाम-ए-सुबह होती
ये बसन्त की श्रुति
बसन्त की श्रुति...
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