साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रायपुर, छत्तीसगढ़
1964
आ गया भादों का पानी काँस के फूलों को दुलारता और चैत की सुलगती दोपहरी में पड़ी है मन की चट्टान एक दूब की हरियाली तक मयस्सर नहीं तपो इतना तपो ओ सूर्य कि फट जाए दरक जाए यह चट्टान कि रास्ता बन जाए अंकुर फूटने का जीवन बीज से फूल तक यात्रा बन जाए।
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