साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
झेलम, पंजाब
1934
बीते रिश्ते तलाश करती है, ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है। जब गुज़रती है उस गली से सबा, ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है। अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार, पीले पत्ते तलाश करती है। एक उम्मीद बार बार आ कर, अपने टुकड़े तलाश करती है। बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर, अपने बेटे तलाश करती है।
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