भजो रे मन बस प्रभु चरण,
तज तन धन संसार को।
पलभर का जीवन दुर्लभ यह,
जग अर्पण कर परमार्थ को।
भजो रे मन श्रीराम शरण नित,
भक्ति प्रेम सरस हितकाम को।
दीन हीन बिन जाति धरम मन,
भज जनसीदन घनश्याम को।
काल खड़ा है महाकाल बन,
तज छल प्रपञ्च अभिभान को।
लगा चित्त सुकर्म न्याय पथ,
भज विमल सुखद हरिधाम को।
मातु पिता गुरु मातृभूमि रज,
भज अतिथि रूप भगवान को,
हरो दुःख अवसाद आर्त नित,
अध्यात्म समझ परमात्म को।
करो यतन तन-मन वतन,
निज प्रेम भक्ति बलिदान को।
राष्ट्र धर्म पूरण कर जीवन,
भज कारण प्रभु अवतार को।
सदाचार पथ नित संस्कार रत,
भजो प्रकृति मातु अभिराम को।
लगा वृक्ष भू हरित भरित कर,
भजो मातु धरा सुखधाम को।
भजो सिन्धु गिरि नदी नद निर्झर,
अनल अनिल शशि प्रभु भानु को।
तज दानव मन मानव गुण सज,
भज उन्मुक्त गगन घनश्याम को।
कैलाशी भज अविनाशी जग,
सुन्दर सत्य शिवम भूधाम को।
जन नर्क निवारण नारायण बन,
पाए समझ मनुज हरि धाम को।
रोम रोम बस जन सुखदायक,
समझो गेह गेह श्रीराम को।
जनसेवन परहित हरि पूजन,
भज भक्ति प्रेम ब्रजधाम को।
कर्म धर्म अध्यात्म सकल जग,
भज दान त्याग सत्नाम को।
आभारी विधि जात चराचर,
भज ब्रह्माण्ड सकल श्रीधाम को।
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