भारत-धरनि (कविता)

(1)
बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि
सकल-जग-सुख-श्रैनि, सुखमा-सुमति-संपति-सरनि

(2)
ज्ञान-धन, विज्ञान-धन-निधि, प्रेम-निर्झर-झरनि
त्रिजग-पावन-हृदय-भावन-भाव-जन-मन-भरनि
बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

(3)
सेत हिमगिरि, सुपय सुरसरि, तेज-तप-मय तरनि
सरित-वन-कृषि-भरित-भुवि-छवि-सरस-कवि-मति-हरनि
बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

(4)
न्याय-मग-निर्धार-कारिनि, द्रोह-दुर्मति-दरनि
सुभग-लच्छिनि, सुकृत-पच्छिनि, धर्म-रच्छन-करनि
बंदहँ मातृ-भारत-धरनि


रचनाकार : श्रीधर पाठक
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