भरोसा (कविता)

कोई अगर आँख बंद किए
चल रहा है हाथ पकड़ कर
तो उसके रास्ते के पत्थर देखना
सँभालना गिरने से पहले

जब भी वह कुछ कहे तो सुनना
देखना कि उसकी आँखें क्या देखना चाहती हैं
सुनना उसकी हर आवाज़
जो कहने से पहले रुक जाए कंठ में

बहुत मुश्किल से मिलता है वह कंधा
जिस पर सिर टिकाया जाए तो
ग्लानि नहीं हो
सुकून मिले।


रचनाकार : शंकरानंद
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