जिस दिन
माओ मुस्कराता था
सुनते हैं नींद अच्छी आती थी
दुश्मन को, उस रात
सपनों की चादर में लिपटकर
विश्व विजेता
क़ौम की कंगाली के क़ासे में
सुबह की पहली किरन देना चाहता था
सखी बनकर
लाल के हाथों गढ़ा जा रहा था भविष्य का चेहरा
दोस्ती और दुश्मनी के बीच
नया सूर्य रच रहा था नींद का नाटक।
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