भविष्य की कल्पना (कविता)

क्यों खोये हो सपनो में,
रात चाँदनी तकने में।
वह तो मात्र भ्रम है भाई,
जो न मिलेगा जीवन में।
क्यों खोए हो सपनो में,
रात चाँदनी तकने में।

उठकर देखो है जीवन बड़ा सुखद,
तुम क्यों करते हो इसे दुखद।
सामने पड़ा है सारा जीवन,
सुख-दुख का तू न कर चिन्तन।
क्यों खोए हो सपनों में,
रात चाँदनी तकने में।

जब वसंत का महीना आए,
यह जग भी सुंदर हो जाए।
ग्रीष्म ऋतु के आते ही देखो,
सब कुछ छू मंतर हो जाए।
क्यों खोए हो सपनो में,
रात चाँदनी तकने में।

कल की चिंता तुम क्यों करते हो,
जीवन से तुम क्यों डरते हो।
आज परिश्रम कर लो भाई,
कल तुम पाओगे सुखदायी।
क्यों खोए हो सपनो में,
रात चाँदनी तकने में।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 15 अप्रैल, 2000
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