साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
शिवहर, बिहार
1996
आदमी तू बड़ा भोला है, बात बोले बड़बोला है। अच्छाई-बुड़ाई में भेद न जाने, आदमी तू बड़ा भोला है। न जाने तू सच्चाई, बस कहे उसकी सुनाई। ग़फ़लत में पड़ता जाता है, आदमी तू बड़ा भोला है। नियम की धज्जी उड़ती सरेआम, माँ-बेटियाँ बदनाम होती सरेआम। फिर भी लड़ता ये नाकाम, शायद कभी तो सुने ये हैवान, आदमी तू बड़ा भोला है।
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