खेतों से जो रत्न उगलते,
कृषकों का सम्मान करो।
भूमिपुत्र हैं ये पालक हैं,
जय किसान कह मान करो।
ख़ून पसीना बहा बहाकर,
ये अनाज उपजाते हैं।
थोड़े में ये करें गुज़ारा,
जग को भोज कराते हैं।
धरती माँ के सुत होने का,
सच्चा फ़र्ज़ निभाते हैं।
माँ के आँचल के भोजन का,
अच्छा क़र्ज़ चुकाते हैं।
ये अनाज के दाता हैं सब,
पालन पोषण करते हैं।
सर्दी गर्मी वर्षा सहकर,
ख़ुद का शोषण करते हैं।
वतन की मिट्टी की ख़ुशबू,
इन के तन से आती है।
पर क़ीमत इनके मेहनत की,
इनको ना मिल पाती है।
इनका त्याग यही है कहता,
कुछ तो इनका ध्यान करो।
ये वँदनीय हैं पूज्यनीय हैं,
इनका ना अपमान करो।
कृषि प्रधान भारत के वासी,
कृषकों का सम्मान करो।
भूमिपुत्र हैं ये पालक हैं,
जय किसान कह मान करो।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें