भोर भी होगी सूरज भी निकलेगा,
चाँदनी सँग-सँग चाँद भी बहकेगा।
पर ना खिलेंगे मिट गए जो फूल,
मिट गए माटी में बन गए जो धूल।
नदियाँ भी बहेंगी सागर भी छलकेगा,
बारिश भी होगी बादल भी बरसेगा।
पर ना बहेंगी यथार्थ की भावनाएँ,
बरसेगी सिर्फ़ यादों की कल्पनाएँ।
अब सिर्फ़ यादों का निशाँ रह जाएगा,
सच तो उनके साथ-साथ बह जाएगा।।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
