साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रानीखेत, उत्तराखण्ड
1976
भोर भी होगी सूरज भी निकलेगा, चाँदनी सँग-सँग चाँद भी बहकेगा। पर ना खिलेंगे मिट गए जो फूल, मिट गए माटी में बन गए जो धूल। नदियाँ भी बहेंगी सागर भी छलकेगा, बारिश भी होगी बादल भी बरसेगा। पर ना बहेंगी यथार्थ की भावनाएँ, बरसेगी सिर्फ़ यादों की कल्पनाएँ। अब सिर्फ़ यादों का निशाँ रह जाएगा, सच तो उनके साथ-साथ बह जाएगा।।
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