बिटिया को देख कर (कविता)

शादी के बाद पहली बार
घर आई बिटिया को देखकर
मैं भाँप लेना चाहता था कि
जिस घर में बिटिया गई है
घर का आँगन इतना तो है न कि
वह अपने गीले बालों को धूप दिखा सके

मैं जान लेना चाहता था कि
घर की दीवारें इतनी
ऊँची तो नहीं हैं कि
चारपाई खिसका कर दरवाज़ों की
सिटकनी न खोली जा सके

और खिड़कियों के परदे इतने
भारी तो नहीं हैं कि
बाहर की हवा भीतर न आ सके
किसी के माँ बाप हमेशा तो नहीं रहते
किसी के याद दिलाने पर ही न
उसे याद आएँगे हम,
और मेरे बाद
मेरा नाम लेते हुए
नहीं आएगी अपने भाई के घर

न चाह कर भी
मैं यहाँ यह सब लिख रहा हूँ
क्योंकि बेटी का सुख सीधे
पिता की आत्मा तक पहुँचता है।


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