बूँद में ब्रह्मांड (कविता)

जब प्राणवायु ने
अपनी से दोगुनी
जलवायु से मिलकर
सिरजी एक बूँद जल की

तब उसी बूँद के
आईने में
देखा मैंने
ख़ुशी से नाचता
समूचा ब्रह्मांड।


रचनाकार : उद्‌भ्रान्त
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