घने तिमिर में अकेले ही जलकर,
जो चहुँ-दिशि रोशनी अपनी बिखेरते हैं,
बुझा दिये जाते हैं अक्सर वो दिये,
जो तूफ़ानों में जीने की हसरत रखते हैं।
पर कहाँ चैन दुनियाँ वालों को,
कहीं कुछ चेहरे पढ़ ना लिए जाएँ,
इसीलिए कुछ होशियार लोग,
जलते हुए चिराग़ों को बुझा देते हैं।
सत्य, ईमान, चरित्र के तेज़ को,
हमेशा कुचलने की आदत है जिन्हें,
उन्हें पता नहीं इनकी अथाह शक्ति ये,
ईश को भी झुकाने की ताक़त रखते हैं।
सत्य की लकीर को काटने वालो,
कभी अपने अन्तर में भी झाँक लो,
बेगुनाही पर इल्ज़ाम ना लगाओ,
ऐसे लोग ख़ुद ही ख़ुद मिट जाते हैं।।

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