साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
पटना, बिहार
1846 - 1927
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं अफ़्लाक-ए-तरक़्क़ी पे चढ़ते जाते हैं मकतब बदला किताब बदली लेकिन हम एक वही सबक़ पढ़ते जाते हैं
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