चले गुलेल (नवगीत)

हो गया है
थाने का
अपराधी से मेल।

उजाले का
ख़ून हो गया।
पहरुए अफ़लातून
हो गया।।

जीवन लगता
है मानो
शतरंज का खेल।

कलियाँ हैं
रौंदी बाग में।
पड़ते हैं
छाले राग में।।

आहत करती
बतकही
जैसे चले गुलेल।


  • विषय :
लेखन तिथि : 2019
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