साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार
1976
चलेगी जब मोहब्बत की कभी चर्चा मिरे पीछे तुम्हें भी याद आएगा मिरा चेहरा मिरे पीछे थकी आँखें बुझी सूरत मगर इक हौसला ले कर कोई है दूर से चलता हुआ आया मिरे पीछे उसे मैं ना-समझ समझूँ नहीं तो और क्या समझूँ मिरे ही घर पे जड़ आता है वो ताला मिरे पीछे जो उस की आँख में सपनों में ढल कर कोई रहता है तो कैसे साया बन कर 'उम्र-भर रहता मिरे पीछे
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें