चलेगी जब मोहब्बत की कभी चर्चा मिरे पीछे (ग़ज़ल)

चलेगी जब मोहब्बत की कभी चर्चा मिरे पीछे
तुम्हें भी याद आएगा मिरा चेहरा मिरे पीछे

थकी आँखें बुझी सूरत मगर इक हौसला ले कर
कोई है दूर से चलता हुआ आया मिरे पीछे

उसे मैं ना-समझ समझूँ नहीं तो और क्या समझूँ
मिरे ही घर पे जड़ आता है वो ताला मिरे पीछे

जो उस की आँख में सपनों में ढल कर कोई रहता है
तो कैसे साया बन कर 'उम्र-भर रहता मिरे पीछे


रचनाकार : डॉ॰ भावना
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