चराग़ों का घराना चल रहा है (ग़ज़ल)

चराग़ों का घराना चल रहा है
हवा से दोस्ताना चल रहा है

जवानी की हवाएँ चल रही हैं
बुज़ुर्गों का ख़ज़ाना चल रहा है

मिरी गुम-गश्तगी पर हँसने वालो
मिरे पीछे ज़माना चल रहा है

अभी हम ज़िंदगी से मिल न पाए
तआ'रुफ़ ग़ाएबाना चल रहा है

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है

वही दुनिया वही साँसें वही हम
वही सब कुछ पुराना चल रहा है

ज़ियादा क्या तवक़्क़ो हो ग़ज़ल से
मियाँ बस आब-ओ-दाना चल रहा है

समुंदर से किसी दिन फिर मिलेंगे
अभी पीना-पिलाना चल रहा है

वही महशर वही मिलने का वा'दा
वही बूढ़ा बहाना चल रहा है

यहाँ इक मदरसा होता था पहले
मगर अब कारख़ाना चल रहा है


रचनाकार : राहत इन्दौरी
  • विषय : -  
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