चावल उबला पीच रहा है,
माली पौधे सींच रहा है।
क़ातिल सा अंधेरा देखा,
एक किरण को भींच रहा है।
सूरज ने बादल जब देखा,
अपनी आँखें मींच रहा है।
मीठे ख़्वाब लूटने वाला,
ज़ाहिर है अब हींच रहा है।
अवगुण यहाँ पसर कर बैठा,
सच को खींचा खींच रहा है।
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