छंद को बिगाड़ो मत, गंध को उजाड़ो मत
कविता लता के ये सुमन मर जाएँगे
शब्द को उघाड़ो मत, अर्थ को पछाड़ो मत
भाषण-सा झाड़ो मत, गीत मर जाएँगे
हाथी से चिंघाड़ो मत, सिंह से दहाड़ों मत
ऐसे गला फाड़ो मत, श्रोता डर जाएँगे
घर के सताए हुए आए हैं बेचारे यहाँ
यहाँ भी सताओगे तो ये किधर जाएँगे?
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